Lomdi aur angoor ki kahani

Lomdi aur angoor ki kahani

लोमड़ी और खट्टे अंगूर (lomdi aur angoor ki kahani ) 

एक दिन एक भूखी लोमड़ी खाने की तलाश में जंगल में इधर-उधर घूम रही थी। लोमड़ी बहुत भूखी थी , लेकिन उसे खाने के लिए कुछ भी नहीं मिल रहा था। ना ही उसे कोई शिकार मिल रहा था ना ही पेड़ पर लगे हुए कोई फल। लोमड़ी को समझ नहीं आ रहा था , कि वह आखिर अपनी भूख को कैसे शांत करें।

खाने की तलाश में लोमड़ी चलते-चलते जंगल से बहुत आगे निकल गई। पता नहीं उस दिन लोमड़ी की किस्मत को क्या हुआ था , जो इतनी दूर चलने के बाद उसे खाने के लिए कुछ नहीं मिल रहा था। खाना ना मिलने पर भी लोमड़ी ने चलना बंद नहीं किया वो आगे चलती ही जा रही थी। लोमड़ी थोड़ी दूर चली उसके बाद उसे कुछ रसीले मीठे फल की सुगंध आने लगी।

रसीले फल के सुगंध से भूखी लोमड़ी के मुंह में पानी आने लगा। लोमड़ी उस रास्ते पर चलने लगी जिधर से वह खुशबू आ रही थी। जैसे-जैसे लोमड़ी आगे बढ़ती जा रही थी वह खुशबू और भी तेज होती जा रही थी। खुशबू के साथ लोमड़ी की भूख भी बढ़ने लगी थी। खुशबू का पीछा करते हुए आखिरकार वह लोमड़ी उस जगह में पहुंच गई जहां से वह खुशबू आ रही थी।

उस जगह पर पहुंचते ही लोमड़ी की आंखें खुली की खुली रह गई। उस जगह तो मीठे अंगूर की भरमार थी। लोमड़ी जहां पर खड़ी थी वहां पर अंगूर का बगीचा था हर तरफ रसीले पके और मीठे अंगूर दिखाई दे रहे थे। अब तो लोमड़ी अंगूर को खाने के लिए 1 मिनट का भी इंतजार नहीं कर सकती थी। उसने तुरंत ही एक छलांग लगाई , ताकि वह उस अंगूर को तोड़ सके। पर अफसोस कि लोमड़ी कि वह छलांग असफल रही और लोमड़ी धड़ाम से नीचे गिर गई।

फिर लोमड़ी ने सोचा कि क्या हुआ जो मैं एक बार असफल हो गई मैं फिर से कोशिश करती हूं। लोमड़ी ने फिर से एक ऊंची छलांग लगाई लेकिन इस बार भी वह असफल रही। ऐसे ही करते करते लोमड़ी ने चार से पांच बार अपनी पूरी ताकत लगाकर कोशिश की लेकिन लोमड़ी हर बार असफल ही रही।  हर बार असफल होने के बाद लोमड़ी सोचने लगी कि मैं भी कहां अपनी मेहनत और समय बेकार कर रही हूं। यह अंगूर तो बेकार है। यह अंगूर तो खट्टे होंगे इसे खाना तो अपने दांत खट्टे करने जैसा है। छोड़ो ऐसे अंगूर कौन खाए ऐसा कहकर लोमड़ी वहां से चली गई।

शिक्षा- इस कहानी ( lomdi aur angoor ki kahani ) से हमें यह शिक्षा मिलती है , कि अगर हम किसी काम को करने में बार-बार असफल हो जाते हैं , तो हमें उसे दूसरे तरीके से करने की कोशिश करनी चाहिए। ना की उस काम को ही बेकार बता कर छोड़ देना चाहिए। जैसा उस लोमड़ी ने किया।

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चोर लोमड़ी  ( Lomdi aur angoor ki kahani )

जंगल के पास में एक बहुत ही मीठे अंगूर का बगीचा था। चाहे वह इंसान हो या जानवर जिस की भी नजर उस मीठे अंगूर पर पड़ती सभी के मुंह में पानी आ जाता। हर किसी के मन में यही बात आती , कि वह उस अंगूर को खा ले लेकिन वह अंगूर का बगीचा जिस आदमी का था वह आदमी बहुत ही सख्त और गुस्से वाला था। वह अपने बगीचे में बड़ी कड़ी निगरानी रखता था उसके बगीचे से अंगूर का गुच्छा तो बहुत दूर एक अंगूर भी उसकी मर्जी के बिना ले जाना किसी के लिए भी नामुमकिन था।

जंगल में रहने वाली लोमड़ी हर बार उस बगीचे के पास जाती और वहां से अंगूर लेने के बारे में सोचती बगीचे का मालिक उसे देख लेता और भगा देता था।

हर बार असफल होने के बाद लोमड़ी सोचती है कि अगर उसे यह अंगूर खाना है तो उसे अपना दिमाग चलाना होगा क्योंकि यहां ताकत दिखाने से बात नहीं बनने वाली। फिर लोमड़ी को बहुत सोचने के बाद एक तरकीब सुझती है। लोमड़ी बगीचे के मालिक के पास जाती है और उसे कहती है कि मैं हमेशा देखती हूं कि आप पूरा दिन कड़ी धूप में बगीचे की रखवाली करते रहते हैं।

आपको बिलकुल भी आराम करने का वक्त नहीं मिलता अगर आप कहें तो मैं आपके बगीचे की रखवाली कर दिया करूंगी मेरे रहते कोई भी यहां से एक भी अंगूर नहीं ले जा पाएगा। लोमड़ी की बात सुनकर बगीचे का मालिक सोचता है कि हां यह बात तो सच है कि वह दिनभर बगीचे की निगरानी करके थक जाता है और बगीचे की रखवाली के कारण वह कोई और काम भी नहीं कर पाता। ऐसे में अगर लोमड़ी उसके बगीचे की रखवाली करेगी तो उसे आराम करने का समय मिल जाएगा ऐसा सोच कर बगीचे का मालिक लोमड़ी को रखवाली के लिए रख लेता है।

मालिक के हां कहते ही लोमड़ी के मन में खुशी के लड्डू फ़ूटने लगते हैं। लोमड़ी सोचती है कि अब तो वह इस बगीचे में रहकर खूब अंगूर खाएगी और अपनी इतने दिन की अधूरी इच्छा को पूरा करेगी। रोज लोमड़ी जाकर बगीचे से थोड़े-थोड़े अंगूर तोड़कर खाती जिससे बगीचे के मालिक को पता भी ना चलता। लेकिन धीरे-धीरे लोमड़ी का लालच बढ़ने लगा और वह ज्यादा ज्यादा अंगूर तोड़कर खाने लगी।

जब बगीचे का मालिक बगीचे में आया तो उसने देखा कि कल की अपेक्षा तो बगीचे में आज अंगूर कम है। उसने लोमड़ी से पूछा कि बगीचे में अंगूर कम क्यों दिखाई दे रहे हैं। लोमड़ी ने तुरंत झूठ बोल दिया और कहा कि पता नहीं मालिक शायद इधर उधर से कोई आकर रात के अंधेरे में अंगूर चुरा कर ले गया होगा लेकिन आप चिंता ना करें मैं अब और भी ज्यादा ध्यान दिया करूंगी।

लेकिन लोमड़ी अपनी हरकतों से कहां बाज आने वाली थी। उसने अपनी चोरी जारी रखी वह रोज अंगूर चुराती और रोज कोई नया बहाना मालिक को बताती। एक दिन मालिक में सोचा कि वह छुप कर अपने बगीचे की निगरानी करेगा कि आखिर उसकी गैर हाजरी में लोमड़ी के रहते हुए भी कौन उसके बगीचे के अंगूर चुरा लेता है।

मालिक छुपकर देखने लगा थोड़े ही देर बाद लोमड़ी बगीचे के अंदर गई और घूम घूम कर मीठे अंगूर खाने लगी। उस दिन मालिक को पता चल गया कि अंगूर कोई और नहीं चुरा रहा था रखवाली के नाम पर लोमड़ी ही अंगूर चुराकर खा रही थी। जब लोमड़ी अंगूर खा रही थी तो मालिक वहां पहुंचा और उसने लोमड़ी को रंगे हाथ पकड़ लिया। उस दिन तो और लोमड़ी के पास कोई बहाना ही नहीं रह गया क्योंकि बगीचे के मालिक ने तो उसे चोरी करते हुए पकड़ लिया था। फिर बगीचे के मालिक ने उसे बहुत खरी-खोटी सुनाकर बगीचे से भगा दिया।

शिक्षा- इस कहानी ( Lomdi aur angoor ki kahani ) से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हम चाहे कितना भी झूठ बोल‌ ले एक ना एक दिन सच सबके सामने आ ही जाता है।

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