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हेल्लो, दोस्तों कैसे हैं आप सब लोग. क्या आप भी विश्वास पर धोखा शायरी धुंध रहे हैं? क्या आपको अभी तक उन्हें मिलने में प्रॉब्लम आ रही हैं? तो अब आपकी समस्या का यहाँ समाधान आपको मिल जाएगा क्योंकि आज हम आपको अपने पास से बहुत ही बेहतरीन और दिल छू लेने वाली विश्वास पर धोखा शायरी देने जा रहे हैं. बस इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक जरूर पढ़ें।
विश्वास पर धोखा शायरी
वो ज़हर देता तो सब की निगह में आ जाता
सो ये किया कि मुझे वक़्त पे दवाएँ न दीं
तिरे वा’दों पे कहाँ तक मिरा दिल फ़रेब खाए
कोई ऐसा कर बहाना मिरी आस टूट जाए
ज़ख़्म लगा कर उस का भी कुछ हाथ खुला
मैं भी धोका खा कर कुछ चालाक हुआ
तू भी सादा है कभी चाल बदलता ही नहीं
हम भी सादा हैं इसी चाल में आ जाते हैं
जो उन मासूम आँखों ने दिए थे
वो धोके आज तक मैं खा रहा हूँ
मुद्दत हुई इक शख़्स ने दिल तोड़ दिया था
इस वास्ते अपनों से मोहब्बत नहीं करते
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
आशिक़ी में बहुत ज़रूरी है
बेवफ़ाई कभी कभी करना
विश्वास धोखा शायरी
हम उसे याद बहुत आएँगे
जब उसे भी कोई ठुकराएगा
फ़ासला नज़रों का धोका भी तो हो सकता है
वो मिले या न मिले हाथ बढ़ा कर देखो
आदमी जान के खाता है मोहब्बत में फ़रेब
ख़ुद-फ़रेबी ही मोहब्बत का सिला हो जैसे
अक़्ल कहती है दोबारा आज़माना जहल है
दिल ये कहता है फ़रेब-ए-दोस्त खाते जाइए
धोका था निगाहों का मगर ख़ूब था धोका
मुझ को तिरी नज़रों में मोहब्बत नज़र आई
विश्वास पर धोखा शायरी 2 Line
मेरे ब’अद वफ़ा का धोका और किसी से मत करना
गाली देगी दुनिया तुझ को सर मेरा झुक जाएगा
समझा लिया फ़रेब से मुझ को तो आप ने
दिल से तो पूछ लीजिए क्यूँ बे-क़रार है
वफ़ाओं के बदले जफ़ा कर रहे हैं
मैं क्या कर रहा हूँ वो क्या कर रहे हैं
यार मैं इतना भूका हूँ
धोका भी खा लेता हूँ
इक सफ़र में कोई दो बार नहीं लुट सकता
अब दोबारा तिरी चाहत नहीं की जा सकती
ऐ मुझ को फ़रेब देने वाले
मैं तुझ पे यक़ीन कर चुका हूँ
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विश्वासघात विश्वास पर धोखा शायरी
हर-चंद ए’तिबार में धोके भी हैं मगर
ये तो नहीं किसी पे भरोसा किया न जाए
जिन की ख़ातिर शहर भी छोड़ा जिन के लिए बदनाम हुए
आज वही हम से बेगाने बेगाने से रहते हैं
किस ने वफ़ा के नाम पे धोका दिया मुझे
किस से कहूँ कि मेरा गुनहगार कौन है
ऐसे मिला है हम से शनासा कभी न था
वो यूँ बदल ही जाएगा सोचा कभी न था
हाथ छुड़ा कर जाने वाले
मैं तुझ को अपना समझा था
दिखाई देता है जो कुछ कहीं वो ख़्वाब न हो
जो सुन रही हूँ वो धोका न हो समाअत का